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राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020: उदीयमान विश्वगुरू भारत

आँठवीं शताब्दी ईस्वी तक वैश्विक सभ्यता मूल्यपरक, सांस्कृतिक व नैतिक शिक्षा हेतु भारत पर निर्भर थी। उस समय के विश्व प्रसिद्ध शिक्षा केन्द्र जैसे गांधार, उज्जैन, नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला और काँची सार्वभौमिक संस्कृति के पोषक थे। विदेशी मूल से संबंधित विभाजनकारी शक्तियों ने सदैव सनातनी धर्म संस्कृति को विभाजित करने एवं पश्चिमी संस्कृति को लागू कराने का पुरजोर प्रयास किया। इसका प्रमुख आधार मैकाले द्वारा रचित शिक्षा प्रणाली थी। भारतीय शिक्षा प्रणाली में व्यक्ति के समग्र विकास की संभावना विद्यमान है क्योंकि भारतीय शिक्षा दृष्टि का उद्देश्य परिवार, समाज व राष्ट्र का सामंजस्यपूर्ण रूप से एकीकरण और पोषण करना है किन्तु मैकाले की शिक्षा पद्धति भारतीय दृष्टिकोण के विपरीत ब्रिटिश साम्राज्यवाद के हितों में पश्चिमी सभ्यता के खोखले ताने-बाने को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से तैयार की गई थी।

This article was originally published in News18 Hindi edition on October 19, 2020

ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली औपनिवेशिक भारत में राजनीतिक और बौद्धिक दासता को बढ़ावा देने में सहायक रही। भारतीय जनमानस ने सदैव भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं के तात्विक दृष्टिकोण को बनाए रखा। उसी अमूल्य धरोहर ने हमारे मनीषियों को सांस्कृतिक, शैक्षिक तथा राजनीतिक स्वतंत्रता से जुड़े समग्र रचनात्मक कार्यक्रमों की व्यापक योजना तैयार करने के लिए प्रेरित किया जिसके कारण आज हमारे सांस्कृतिक नायकों के यशस्वी प्रयास को फलीभूत होते हुए विश्व देख रहा है।

स्वतंत्रता के पश्चात जो पराजय का भाव शिक्षा के क्षेत्र में देखने को मिला वह भाव समस्त भारतवासियों के लिए अप्रत्याशित था क्योंकि लार्ड मैकाले द्वारा योजनाबद्ध की गई शिक्षा प्रणाली के ढाँचे से एक बड़ा बौद्धिक वर्ग उबर नहीं सका। उस विफलता ने पूरे बुनियादी ढाँचे को प्रभावित किया क्योंकि शिक्षा के कारण ही हम राष्ट्र निर्माण की आधारशिला को संबल प्रदान कर सकते हैं। हमारे देश में वर्तमान पाठ्यक्रम और योजनाएँ साढ़े तीन दशक पहले की शिक्षा नीति पर आधारित है। यह व्यक्ति की रचनात्मक सोच तथा अनुसंधान कौशल की गुणवत्ता को प्रभावित करती रही है क्योंकि सृजन शक्ति का मूल स्रोत हमारा भारतीय दर्शन है। आज ध्येय के अनुरूप भारतीय शिक्षा पद्धति की अवधारणा को पुनः संशोधित करने एवं अनुसंधान वृत्ति के गुण को संवर्धित करने की महती आवश्यकता है। भारत सरकार द्वारा घोषित राष्ट्रीय शिक्षा नीति (2020) में भारतीय दर्शन के मूल्यों और विशिष्टता के अनुरूप सम्मिलित किया गया है।

वर्तमान शिक्षण पद्धति की संरचना में बदलाव करते हुए 5+3+3+4 को सम्मिलित किया गया है। परिणामस्वरूप प्राथमिक कक्षाओं को शामिल करके नया संकुल (cluster) बनाया जाएगा जिससे मौजूदा स्कूली पाठ्यक्रमों के अतिरिक्त नवीन मानक तैयार हो सकेगा। इस प्रकार तीन वर्ष की उम्र से शिशु औपचारिक शिक्षा प्रणाली का अंग बन जाएगा। यह शिक्षा प्रणाली का प्रथम चरण है। यह शिक्षा नीति वास्तविक शिक्षा की शुरुआत से पहले नींव की अवस्था के रूप में 3 से 8 वर्ष की अवधि का आकलन करती है। इस अवधि के दौरान खेल के माध्यम से शारीरिक व मानसिक विकास, स्वच्छता, व्यावहारिक ज्ञान एवं सहयोग भाव जैसे मूल्यों का प्रभावी शिक्षण प्रदान किया जाना है। नीति का उद्देश्य जीवन जीने की शिक्षा प्रदान करना है, शिक्षा और जीवन के बीच की कड़ी को सुदृढ़ करना है।

प्रथम चरण: मातृभाषा की भूमिका

मातृभाषा की भूमिका के दृष्टिकोण से द्वितीय स्तर 3री से 5वीं कक्षा प्रारंभिक चरण है। यहाँ खेल एवं अन्य गतिविधियों के माध्यम से सीखने पर अर्थात व्यावहारिक ज्ञान पर बल दिया गया है। लिखने-पढ़ने तथा गणित जैसे विषयों के साथ मानसिक विकास को महत्व दिया गया है। किसी भी छात्र के बौद्धिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक विकास के लिए मातृभाषा की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। माँ की भाषा मातृभाषा बन जाती है क्योंकि यह वह भाषा है जो छात्र के पालन-पोषण के समय सुनने को मिलती है, जो बच्चे के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए शक्ति का स्रोत भी है। मातृभाषा के माध्यम से किसी भी छात्र की दृष्टि, भावना, रचनात्मकता, विश्लेषण क्षमता, प्रतिक्रिया और परिपक्वता को बढ़ाना तथा पोषित करना संभव है। केवल मातृभाषा ही ज्ञान की अनुभूति करा सकती है अर्थात ज्ञान को एक अनुभव बना सकती है इसलिए यह नीति निर्धारित करती है कि पाँचवीं कक्षा तक की शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए।

व्यावसायिक शिक्षा

व्यावसायिक शिक्षा को कक्षा 6 से 8 (माध्यमिक चरण) में शामिल किया गया है। विषय विशेषज्ञों द्वारा छात्रों को विषय की स्पष्ट समझ देने के लिए और अध्ययन के साथ कार्यानुभव (internship) के माध्यम से प्राथमिक शिक्षा के साथ ज्ञान और काम को एकीकृत किया जाएगा। समय के साथ शिक्षा को केवल परीक्षा के माध्यम से जीवन की जीवनदायिनी बनने से स्थानांतरित कर दिया गया है।

जिज्ञासा, भावना और तार्किक क्षमता का विकास

जिज्ञासा, भावना एवं विषयों को जानकर समझने की क्षमता का होना ज्ञान को प्राप्त करने का मुख्य साधन माना गया है। इस कारण छात्र अपने मन के भीतर की रचनात्मकता को आकार दे सकता है। इसलिए ऐसे पाठ्यक्रम की परिकल्पना कक्षा 9 से 12 में की गई है। यह अवधि किसी भी छात्र के लिए अपनी रुचि को आकार देने और गहराई के साथ अध्ययन तथा जीवन उद्देश्य को गति देने में सक्षम बनाती है।

प्रतिमान विस्थापन

वर्णित वर्तमान शिक्षा संरचना के विपरीत, राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उद्देश्य औपचारिक शिक्षा के तहत 3 से 18 वर्ष के छात्रों को समूह में लाना है। नीति का लक्ष्य वर्ष 2030 तक सभी वंचित छात्रों को स्कूल तक पहुँचाना है। साथ ही शिक्षा क्षेत्र में उत्थान हेतु GDP के 6% हिस्से के आवंटन की बात कही गई है, जोकि सर्वाधिक स्वागत योग्य है क्योंकि शिक्षा राष्ट्र निर्माण की आधारशिला है। वर्तमान सदी में अध्ययन, अनुसंधान को गति देने की आवश्यकता के अनुरूप सामाजिक विकास के स्तर को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आँगनवाड़ी से लेकर उच्च शिक्षा तक सभी के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना है ताकि शिक्षा नीति गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करते हुए भारत को वास्तविक गौरव और उत्कृष्टता सहित पुनः स्थापित कर सकें। किसी भी राष्ट्र के निवासियों के भविष्य का निर्धारण करने में शिक्षा और शासन की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। शासकों को देश के भविष्यकालीन विकास प्रतिमानों के बारे में आश्वस्त होना चाहिए कि भावी पीढ़ी को कैसे आकार दिया जाना है। उस अर्थ में भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति वैज्ञानिक ढंग से सक्षम एवं जागरूक तथा समर्थ युवा पीढ़ी का विकास करेगी जो न्याय-सार्थकता एवं तात्विक दृष्टि को बनाए रखेगी। नीति में रोजगार सृजक उद्योजक तैयार करने की दृष्टि समाहित है, जिसमें छात्र अध्ययन के विविध और परस्पर संबंधित क्षेत्र के माध्यम से जो कुछ भी सीखना चाहते हैं उसे प्राप्त कर सकेंगे। इस प्रकार वर्तमान स्थिति में एक सार्थक बदलाव हो सकेगा। शिक्षा के उद्देश्य को सार्थक करने के साथ-साथ राष्ट्र की उत्कृष्टता प्रत्यक्ष रूप से साकार कर सकेगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति समस्त क्षेत्रों में ज्ञान दृष्टि का विस्तार तथा भारत को समर्थ पीढ़ी की भूमि में परिवर्तित कर विश्वगुरु की उपाधि से पुनः विभूषित करने की दिशा में अपरिहार्य कदम है जो समस्त बाधाओं को पार कर सकेगा।

वंदे मातरम्!

Published by Vishnu S. Warrier